The narrative traverses landscapes via motorcars, railways, boats, through mountains, valleys, dense forests, rivers, towns, and rural fields. The book provides authentic descriptions of Burma’s natural resources, religions, cultures, Buddhist temples, customs, dance, music, and trade.

It meticulously documents the search for settlements of exiled people brought from Assam and traces the origins of the Ahom people to southern Yunnan province in China. The arduous journey through Burma and the escape from Manipur in 1942, chronicled in the final chapter "The Diary of the Great Exodus," captures the author’s daring, thrilling, and poignant experiences during a 65-day ordeal to return home.

Originally published in Assamese posthumously in 1993 and translated into English in 2016, this seminal Assamese work continues to be a historic testament.

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लोगों की राय

लेखक:

पूर्णकान्त बुढ़ागोहाईं

चाओ पूर्णकान्त बुढ़ागोहाईं (1890-1959) का असमिया भाषा का क्लासिकी यात्रा-वृत्त ‘पातकाई सीपारे न बछर’ का हिन्दी अनुवाद ‘पातकाई पर्वतमाला के पार…’उस काल खण्ड (1933-1942) में बर्मा देश (म्यान्मार)दक्षिण चीन का युन्नान प्रदेश और श्यामदेश (थाईलैण्ड) में साहसिक भ्रमणऐतिहासिक अनुसंधान और व्यापारिक प्रयोग की अद्भुत पुस्तक है। यह कृति पाठकों को तत्कालीन सूक्ष्म विवरणों के अतिरिक्त इतिहास के पन्नों में हज़ारों वर्ष पीछे तक ले जाएगी।

यह भ्रमण मोटरगाड़ीरेलगाड़ी या पानी के जहाज सेऊँचे-नीचे पहाड़ोंघाटियोंबीहड़ जंगलोंनदी-नालोंछोटे-बड़े कस्बोंनगरों से या गाँव खेत-खलिहानों से गुज़रता जाता है। पुस्तक में बर्मा की प्राकृतिक सम्पदाधर्मसंस्कृतिबौद्ध मंदिरोंआचार-व्यवहारनृत्य-संगीतव्यापार-कारोबार के प्रामाणिक विवरण मिल जाएँगे।

बर्मा मेंअसम से बंदी बनाकर लाए गए लोगों की बस्तियों की खोज और असम के ‘अहोम’ लोगों के मूल-स्थान-संधान में दक्षिण चीन के यून्नान प्रदेश की कठिन यात्रापुस्तक को एक ऐतिहासिक दस्तावेज बना देती है।

अंतिम अध्याय ‘महापलायन का रोजनामचा’ में 1942 में पहाड़ों और जंगलों के रास्ते लेखक के बर्मा से भाग निकलनेऔर 65 दिनों की दौड़-भाग के बादमणिपुर से होते हुए अपने घर तक पहुँचने का साहसिकरोमांचक और लोमहर्षक अनुभव संचित है।

इस मूल असमिया पुस्तक का प्रकाशन लेखक की मृत्यु के पैंतीस वर्ष बाद 1993 में और इसका अंग्रेजी अनुवाद 2016 में प्रकाशित हुआ था।

पातकाई पर्वतमाला के पार…

पूर्णकान्त बुढ़ागोहाईं

मूल्य: $ 14.95

पूर्णकान्त बुढ़ागोहाईं की यात्रा-वृत्त 'पातकाईर सीपारे न बछर' का हिंदी अनुवाद: साहित्य, संघर्ष और संस्कृति के सम्मेलन में एक अद्वितीय यात्रा।

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